अतिरिक्त >> माँ दुर्गा के रहस्य माँ दुर्गा के रहस्यकमल किशोर
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माँ दुर्गा के रहस्य...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
माँ जगदम्बिका (दुर्गा) को प्रणाम
यस्या : प्रभावमखिलं न हि वेद धाता
नो वा हरिर्न गिरिशो न हि चाप्यनन्तः।
अंशाशंका अपि च ते किमुतान्यदेवा-
स्तस्यै नमोऽस्तु सततं जगदम्बिकायै।।
यत्पादपङ्कजरजः समवाप्य विश्वं
ब्रह्मा सृजत्यनुदिनञ्च बिभर्ति विष्णुः।
रुदश्च संहरति नेतरथा समर्था-
स्तस्यै नमोऽस्तु सततं जगदम्बिकायै।।
नो वा हरिर्न गिरिशो न हि चाप्यनन्तः।
अंशाशंका अपि च ते किमुतान्यदेवा-
स्तस्यै नमोऽस्तु सततं जगदम्बिकायै।।
यत्पादपङ्कजरजः समवाप्य विश्वं
ब्रह्मा सृजत्यनुदिनञ्च बिभर्ति विष्णुः।
रुदश्च संहरति नेतरथा समर्था-
स्तस्यै नमोऽस्तु सततं जगदम्बिकायै।।
जिस देवी के सम्पूर्ण प्रभाव को सम्पूर्ण ज्ञान धारण करने वाले वेद, शक्ति के ही अंश ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और शेष् भी जानने में असमर्थ हैं, तो दूसरे देवता कैसे जान सकते हैं ? ऐसी उन जगदम्बिका माँ दुर्गा को मेरा सदैव नमस्कार व प्रणाम है।
जिनके चरण-कमलों की धूलि ग्रहण कर ब्रह्मा सम्पूर्ण विश्व की रचना करते हैं, भगवान विष्णु पालन करते हैं और रुद्र (महेश) संहार करते हैं; किसी दूसरे उपाय से वे अपना-अपना कार्य (उत्पत्ति, पालन एव संहार कार्य) करने में समर्थ नहीं हो सकते-ऐसी देवी शक्ति दुर्गा जगदम्बिका को मेरा सदैव प्रणाम है।
जिनके चरण-कमलों की धूलि ग्रहण कर ब्रह्मा सम्पूर्ण विश्व की रचना करते हैं, भगवान विष्णु पालन करते हैं और रुद्र (महेश) संहार करते हैं; किसी दूसरे उपाय से वे अपना-अपना कार्य (उत्पत्ति, पालन एव संहार कार्य) करने में समर्थ नहीं हो सकते-ऐसी देवी शक्ति दुर्गा जगदम्बिका को मेरा सदैव प्रणाम है।
- संतश्री कमल किशोर
अध्यात्म में एक ऐसी स्थिति आ जाती है जब इन्द्रियों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता। उस समय सिर्फ एक ही भाषा रह जाती है और वह होती है-हृदय की भाषा। छठी इन्द्रिय जाग जाती है। हृदय की भाषा को शब्दों द्वारा मुंह से कहे बिना वे वहां बैठे हुए मुझसे यहां बात कर सकते हैं और मैं उनकी सारी बात समझ सकता हूं।
- शिवदत्त शर्मा
परम् प्रेममय सन्त कमल किशोर जी द्वारा प्रकाशित कृति ‘माँ दुर्गा के रहस्य’ ध्यान-योग हेतु एक अमूल्य प्रसून है। अपने इष्टदेव की साकार प्रतिमा की अनुभूति उस समय तक अभिभूत नहीं हो सकती, जब तक देव प्रतिमा एवं सुसज्जा का रहस्य हमें ज्ञात न हो। यह आधारभूत ज्ञान ‘माँ दुर्गा’ के ध्यान, जिसके द्वारा ध्यान साधना सफल हो सकती है, साधकों के लिए परम् मनोमय कृति है।
- विजयपाल सिंह
आपके हाथों में परम् तत्ववेत्ता सन्त श्री कमल किशोर जी के प्रवचन पर आधारित ‘माँ दुर्गा के रहस्य’ किताब है। बडी सरल भाषा में सभी रहस्यों पर प्रकाश डाला गया है। सन्त जी का स्नेह सभी पर समान रूप से बरसता है। अपने स्नेह भरे स्पर्श व वाणी से वे सभी को आनन्द की अनुभूति कराते हैं। एक जीवन्त गुरु हैं वे इस पृथ्वी पर। सौभाग्य है उनका, जो उनके सान्निध्य में हैं।
सभी का, भला चाहने वाले निःस्वार्थ कार्य करने वाले इस आध्यात्मिक एवं धार्मिक गुरु को मेरा नमन।
सभी का, भला चाहने वाले निःस्वार्थ कार्य करने वाले इस आध्यात्मिक एवं धार्मिक गुरु को मेरा नमन।
- उपहार रस्तोगी
जैसा मैं जानता हूं
सन्त श्री कमल किशोर जी इस समय परम् भगवत्ता, परम् तत्व को उपलब्ध सन्त हैं। वे एक समग्र पुरुष और अनूठे तत्ववेत्ता रहस्यदर्शी भी हैं। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जो उनके ज्ञान के स्पर्श से आलोकित न हुआ हो। वे बातें करते हुए भी ध्यान को उपलब्ध हैं, तो मौन होकर भी ध्यान को उपलब्ध हैं। परमात्मा की शक्ति से वे धर्म के गुप्त रहस्यों से पर्दा उठाते हैं, तो आम आदमी की भाषा में जीवन के गहरे-से-गहरे रहस्यों को खोलते हैं। साथ ही विध्वंसात्मकता को रचनात्मकता में बदलते हैं।
परम् तत्ववेत्ता सन्त श्री कमल किशोर जी मेरे गुरु हैं और परम् मित्र भी। वे अहंकार से शून्य हैं, प्रेम से ओतप्रोत हैं। वे तो उनसे भी प्रेम करते हैं, जो उनसे घृणा करते हैं।
जीने की कला का ज्ञान है उन्हें ! वे अपने ज्ञान को बांटते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह नदी अपना जल सभी को बांटती चली जाती है। वे प्रेम बांटते हैं वैसे ही, जैसे सूर्य अपने प्रकाश और हवा द्वारा मनुष्य को जीवन बांटती है।
दूर-दूर से लोग उनके पास आते हैं। उनके स्पर्श में एक जादू है-जीवन का जादू ! उनकी वाणी में प्रेम की मिठास है-इस पृथ्वी के सबसे सुखी व आनन्दित प्राणी हैं।
खुला निमन्त्रण है उनका सभी को-आओ ! प्रेम की विशाल बाँहों में समा जाओ। जीवन को जिओ।
परम् तत्ववेत्ता सन्त श्री कमल किशोर जी मेरे गुरु हैं और परम् मित्र भी। वे अहंकार से शून्य हैं, प्रेम से ओतप्रोत हैं। वे तो उनसे भी प्रेम करते हैं, जो उनसे घृणा करते हैं।
जीने की कला का ज्ञान है उन्हें ! वे अपने ज्ञान को बांटते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह नदी अपना जल सभी को बांटती चली जाती है। वे प्रेम बांटते हैं वैसे ही, जैसे सूर्य अपने प्रकाश और हवा द्वारा मनुष्य को जीवन बांटती है।
दूर-दूर से लोग उनके पास आते हैं। उनके स्पर्श में एक जादू है-जीवन का जादू ! उनकी वाणी में प्रेम की मिठास है-इस पृथ्वी के सबसे सुखी व आनन्दित प्राणी हैं।
खुला निमन्त्रण है उनका सभी को-आओ ! प्रेम की विशाल बाँहों में समा जाओ। जीवन को जिओ।
- डॉ प्रभात वर्मा
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